हाल ही में एक हाईकोर्ट के फैसले ने उन परिवारों के लिए बड़ा झटका दिया है, जिनमें बेटियां अपने पिता की संपत्ति पर दावा कर रही थीं। यह फैसला खास तौर पर उन मामलों पर लागू होता है जिनमें बेटियों ने अपने पिता के निधन के बाद उनके संपत्ति में हिस्सा मांगने की कोशिश की थी। भारतीय समाज में संपत्ति को लेकर महिलाओं और बेटियों को पहले ही काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देशभर में बेटियों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार देने की पुरजोर मांग रही है।
भारत में संपत्ति के अधिकारों को लेकर हमेशा चर्चा रही है। शादी के बाद बेटियों को अक्सर “पराया धन” मानकर उनके पिता की संपत्ति में उनका अधिकार नाकार दिया जाता रहा है। हालांकि कानूनों में बदलाव हुए हैं, मगर कई मामलों में माना जाता है कि बेटियों की संपत्ति पर हकदारी अभी भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई है। कोर्ट के इस हालिया फैसले ने एक बार फिर संपत्ति कानूनों की बारीकियों और पुराने-नए नियमों के फर्क को चर्चा में ला दिया है।
Father Property Rights
हाईकोर्ट का यह फैसला मुख्य रूप से उन परिवारों पर लागू होता है, जहां पिता की मृत्यु 1956 के पहले हो गई थी। कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि 1956 से पहले लागू कानूनों के अनुसार उन बेटियों को उनके पिता की संपत्ति में कोई कानूनी हक नहीं मिलेगा। यह फैसला उस समय की सोशल और लीगल व्यवस्था को ध्यान में रखकर दिया गया है, जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं मिला करता था।
इस निर्णय की खास वजह यह रही कि 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होने से पहले बेटियों को संपत्ति में उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता ही नहीं दी गई थी। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के एक मामले में व्यक्ति की मृत्यु 1952 में हो गई थी, और बाद में उसकी बेटियों ने संपत्ति में हिस्सा मांगा। लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि उस दौर के कानून के तहत बेटियों को यह अधिकार नहीं मिल सकता।
अगर पिता की मृत्यु 1956 के बाद हुई है, तो मामला बदल जाता है। 1956 में लागू हुए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ने बेटियों को संपत्ति का अधिकार तो दिया, मगर शुरुआत में इसमें कई सीमाएं थीं। 2005 में हुए बड़े संशोधन के बाद बेटियों को बेटे के बराबर पूरा हक मिल गया कि वे पैतृक संपत्ति में अपनी दावेदारी ठोक सकें। मगर इस कानून का भी लाभ उन्हें तभी मिलता है अगर पिता की मृत्यु 2005 के बाद हुई हो या उन्होंने संपत्ति की वसीयत नहीं बनाई हो।
कानून के अनुसार, दो तरह की संपत्तियां होती हैं – पैतृक संपत्ति और स्वयं अर्जित संपत्ति। पैतृक संपत्ति को लेकर बेटियों और बेटों को बराबर अधिकार मिलते हैं, लेकिन अगर संपत्ति खुद पिता ने अर्जित की है और उन्होंने वसीयत कर दी है, तब उसकी इच्छानुसार संपत्ति का वितरण हो सकता है। ऐसे मामलों में अगर वसीयत सिर्फ बेटे के नाम है, तो बेटी उसे चुनौती नहीं दे सकती। लेकिन अगर वसीयत नहीं है, तो दोनों बेटे-बेटी को बराबर अधिकार मिलते हैं।
इस हाईकोर्ट के फैसले से उन परिवारों को बड़ा असर पड़ेगा जिनमें अब तक पिता की संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ और पिता की मृत्यु 1956 से पूर्व हो चुकी है। ऐसे में बेटियों को यह जानना और समझना जरूरी है कि उनका कानूनी अधिकार कब लागू होता है और कब नहीं। कोर्ट ने कहा है कि कानून समय-समय पर बदलता रहा है, इसलिए हर मामले में उस समय लागू कानून के अनुसार ही संपत्ति का वितरण होगा।
बेटियों के लिए जरूरी सुझाव
अगर कोई बेटी पिता की संपत्ति में हिस्सा चाहती है, तो सबसे पहले यह जांचे कि पिता की मृत्यु किस वर्ष हुई थी। इसके अलावा यह भी देखना चाहिए कि संपत्ति का बंटवारा पहले से हो चुका है या नहीं। अगर मौत 1956 के बाद की है, तो बेटी अपने अधिकार के लिए कोर्ट जा सकती है। अगर 1956 से पहले हुई है, तो किसी अनुभवी वकील से सलाह अवश्य लें क्योंकि इस स्थिति में स्थिति जटिल हो सकती है।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट द्वारा दिया गया यह फैसला भारत के लाखों परिवारों को प्रभावित कर सकता है। यह बेटियों के संपत्ति में अधिकार को लेकर कानून की मजबूती और सीमाओं दोनों को उजागर करता है। भविष्य में बेटियों को अपना हक पाने के लिए पुराने फैसलों और नियमों को ध्यान में रखकर कार्य करना होगा, ताकि उन्हें उनके अधिकारों से वंचित न किया जा सके।